Tuesday, May 26, 2020

अभिप्रेरणा हेतु एक रोचक हिंदी कथा (A Hindi story for motivation)

बुद्धिमत्ता एवं प्रसंगावधानता का महत्व !

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एक गाँव में एक वृद्ध पंडित, अपनी कन्यासमेत एक छोटे से गृह में निवास करता था। कन्या अतिसुंदर थी। उसकी आयु विवाहयोग्य हो गयी थी। दिन व्यतीत हो रहे थे। 
    किसी कारणवश पंडित को ऋण की आवश्यकता पड़ गयी। एक महाजन ने उसे इच्छित ऋण दिया। किन्तु वह दुष्ट था। उसे पूर्ण अनुमान था की पंडित समय पर ऋण का भुगतान नहीं करेगा। उसके पश्च्चात वह उसकी सुंदर कन्या से विवाह करने का प्रस्ताव रखेगा और पंडित को अनुमति देने पर विवश होना पड़ेगा।

घटित भी वहीं हुआ। दुष्ट महाजनने पंडित के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। पंडित की कन्या यह श्रवण कर दुखी हो गयीं। वह महाजन की दुष्टता से भलीभाँति परिचित थी।

महाजन ने दुखत प्रतिक्रिया देखकर कहा, "एक अन्य विकल्प हैं। गाँव के विद्वान लोगों को एक सभा में, नदी के किनारे आमंत्रित करते हैं। एक कुंभ  में दो पाषाण होंगे - एक काला, तथा एक श्वेत। बिना देखे, कन्या को एक पाषाण को बाहर निकालना होगा। यदि वह पाषाण काला निकला तो कन्या को मुझसे विवाह करना होगा। परंतु यदि उस कुंभ से श्वेत पाषाण निकला तो विवाह करने की आवश्यकता नहीं होगी अपितु मैं आपका ऋण भी क्षमा कर दूँगा।"

Presence of mind - stones      Pebble Series 4



पंडित की कन्या केवल सुंदर नहीं थी। वह बुद्धिमान भी थी। उसने महाजन का यह नविन प्रस्ताव स्वीकार किया।

तिथि निश्चित की गयी, और गाँव के विद्वान जन नदी के किनारे सभा में उपस्थित हो गए।

महाजन ने उसके स्वाभाव अनुसार दुष्टता की। उसने कुंभ में दोनों काले रंग के ही पाषाण रख दिए। पंडित की कन्याने यह दृश्य देखा और उसे ज्ञात हुआ की उसके साथ छल हो रहा है। यदि वह विद्वानों के समक्ष महाजन की सत्यता उजागर करती तो संभवतः महाजन उसका भविष्य में प्रतिशोध अवश्य ले लेता।

(अब वाचक स्वयं को उस कन्या के स्थान पर रखे और विचार करें ... आप क्या करते  ?)

पूर्ण विचार करने के उपरांत उसने एक उत्तम योजना रची।

जब उसने कुंभ से पाषाण निकाला, तो उसे तत्क्षण उसने फ़ेंक दिया (निक्षेपण किया)। वह स्थान नदी किनारे था इस कारण वहाँ पाषाण ही पाषाण थे।  यह किस पद्धति से प्रमाणित करना संभव था की कौनसा पाषाण निकला था ?

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इस अवसर का पूर्ण लाभ उठाते हुए कन्या ने विद्वानों से कहा, "कोई क्लेश का कारण नहीं है - कुंभ में कौनसा पाषाण शेष है यह देखते है....

सब विद्वानों ने देखा की काला पाषाण शेष रह गया था !!

उन्होंने अंतिम निर्णय यह दिया की प्रथम श्वेत पाषाण का ही चुनाव हुवा होगा। अतः महाजन के वचन-अनुसार पंडित का ऋण क्षमा हो गया है एवं कन्या को भी महाजन से विवाहबद्ध होने की कोई आवश्यकता नहीं है।

तात्पर्य :

 बुद्धिमत्ता एवं प्रसंगावधानता हो, तो कठिन समय में भी विजय प्राप्त करना संभव होता है। 

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[आशा करता हूँ की यह कथा, आप सभी को रोचक लगी।  यदि लेखन में कोई त्रुटि हो,तो क्षमा कर दें। ]





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